घर या जमीन पर अवैध कब्जे में यदि पुलिस विरोधी का साथ दे तो मालिक की शक्तियां
संपत्ति पर अवैध कब्जा एक आम समस्या है, लेकिन अगर पुलिस खुद कब्जाधारी का पक्ष ले तो स्थिति और जटिल हो जाती है। ऐसे में संपत्ति मालिक के पास क्या विकल्प हैं? हम यह देखेंगे भारतीय न्याय संहिता 2023 (BNS) और भारतीय संविधान के तहत, जहां मालिक पुलिस की गलत कार्रवाई के खिलाफ कदम उठा सकता है। यह ब्लॉग 2025 तक के अपडेटेड कानूनों और निर्णीत मामलों पर आधारित है। याद रखें, यह सामान्य जानकारी है; वास्तविक मामले में वकील से सलाह लें।

समस्या की पृष्ठभूमि
भारत में जमीन विवाद अक्सर होते हैं, और अवैध कब्जा (encroachment) सिविल या क्रिमिनल दोनों रूप ले सकता है। BNS 2023, जो 1 जुलाई 2024 से लागू हुई, अवैध कब्जे को क्रिमिनल ट्रेसपास (सेक्शन 329) के रूप में देखती है, जहां इरादा (intent) साबित होना जरूरी है। लेकिन अगर पुलिस FIR दर्ज न करे या कब्जाधारी की मदद करे, तो यह पुलिस की ड्यूटी में चूक है। संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता), 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण, जिसमें संपत्ति शामिल) और 300A (कानून के बिना संपत्ति से वंचित न करना) मालिक को सुरक्षा देते हैं।
ऐसे मामलों में मालिक पुलिस के खिलाफ शिकायत कर सकता है, उच्चाधिकारियों से संपर्क कर सकता है, या कोर्ट जा सकता है। आइए विस्तार से देखें।
मालिक की कानूनी शक्तियां और उपाय
यदि पुलिस कब्जाधारी का साथ दे रही है – जैसे FIR न दर्ज करना, जांच न करना, या गलत तरीके से मदद करना – तो मालिक के पास ये विकल्प हैं:
पुलिस के खिलाफ आंतरिक शिकायत:
- पहले जिला पुलिस अधीक्षक (SP) या उच्च अधिकारी से लिखित शिकायत करें। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 (BNSS) के सेक्शन 173 के तहत, पुलिस को जांच करनी पड़ती है। अगर चूक हो, तो पुलिस अधिकारी पर अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है।
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- अगर पुलिस भ्रष्टाचार में शामिल लगे, तो भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत शिकायत। BNS 2023 के सेक्शन 223 (पब्लिक सर्वेंट की अवैध संपत्ति) लागू हो सकता है अगर पुलिस अधिकारी लाभ ले रहा हो।
- सिविल उपाय:
- सिविल कोर्ट में मुकदमा दायर करें: कब्जा हटाने के लिए eviction suit (संपत्ति अधिनियम 1882 या राज्य कानूनों के तहत), या injunction (अंतरिम आदेश) के लिए। अगर पुलिस बाधा डाल रही है, तो कोर्ट से पुलिस को निर्देश देने की मांग करें।
- टाइटल सूट: अपनी मालिकाना हक साबित करने के लिए, जहां कोर्ट declaration of ownership दे सकता है।
- क्रिमिनल उपाय:
- अगर पुलिस FIR न दर्ज करे, तो मजिस्ट्रेट कोर्ट में निजी शिकायत (BNSS सेक्शन 223) दायर करें। BNS 329 के तहत ट्रेसपास साबित करें।
- पुलिस की चूक पर: BNS सेक्शन 221 (पब्लिक सर्वेंट की ड्यूटी में चूक) लागू हो सकता है, जहां सजा 1 साल तक की हो सकती है।
- संवैधानिक उपाय: उच्च न्यायालय में रिट याचिका:
- अनुच्छेद 226 के तहत हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर करें। यह पुलिस को निर्देश देने के लिए (mandamus) या गलत आदेश रद्द करने के लिए (certiorari) इस्तेमाल होता है।
- अगर पुलिस जीवन या संपत्ति को खतरे में डाल रही है, तो पुलिस सुरक्षा मांगें। लेकिन साबित करना पड़ता है कि खतरा वास्तविक है।
- अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं अगर मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो। लेकिन ज्यादातर मामलों में हाई कोर्ट पहले।
- अन्य संस्थाएं:
- राज्य मानवाधिकार आयोग या लोकायुक्त से शिकायत अगर पुलिस का दुरुपयोग हो।
- अगर सरकारी जमीन हो, तो राजस्व विभाग या नगर निगम से मदद। लेकिन निजी संपत्ति में मुख्य रूप से कोर्ट।
2025 तक, कोर्ट्स पुलिस के दुरुपयोग पर सख्त हैं, और BNS ने जुर्माने बढ़ाए हैं ताकि अपराध रोकें।
निर्णीत वादों से समझें
कई मामलों में कोर्ट्स ने मालिक के अधिकारों को मजबूत किया है, खासकर जब पुलिस पक्षपाती हो। यहां कुछ प्रमुख:
- Supreme Court Clarifies Land Grabbing in 2025 Case (2025): सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि शांतिपूर्ण अवैध कब्जा भी दंडनीय है। अगर पुलिस मदद न करे, तो मालिक रिट याचिका से पुलिस को बाध्य कर सकता है। यह BNS 329 के तहत intent की व्याख्या करता है।
- Supreme Court on Absence of Police Guidelines in Land Grabbing Cases (2023): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लैंड ग्रैबिंग में पुलिस गाइडलाइंस की कमी से अधिकारी अनियंत्रित हो जाते हैं। तमिलनाडु को कानून बनाने का सुझाव दिया। अगर पुलिस पक्ष ले, तो अनुच्छेद 226 से चुनौती दें।
- Punam Gupta And Another vs State Of H.P. And Others (2024): हिमाचल हाई कोर्ट ने सरकारी जमीन पर encroachment रोकने के लिए सख्त प्रावधानों पर जोर दिया। अगर पुलिस निष्क्रिय, तो मालिक (या राज्य) रिट से कार्रवाई करा सकता है।
- Kerala HC: Mandamus Under Article 226 Lies Only on Proof of Law Violation (2025): केरल हाई कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 226 के तहत mandamus तभी जब कानून उल्लंघन साबित हो। पुलिस सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा दिखाना जरूरी, वरना याचिका खारिज। लेकिन संपत्ति विवाद में अगर पुलिस बाधा, तो लागू।
- Calcutta High Court Dismisses Plea Alleging Police Inaction (2025): कलकत्ता हाई कोर्ट ने कहा कि निजी विवाद में अनुच्छेद 226 से सिविल कोर्ट को बाइपास न करें। लेकिन अगर पुलिस मौलिक अधिकारों का उल्लंघन कर रही हो, तो याचिका मान्य।
- Supreme Court Slams UP, Issues Directions to All States (2024): सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश को फटकार लगाई encroachment पर। कहा कि encroacher को नोटिस दें, और अगर पुलिस मदद न करे, तो राज्य जिम्मेदार। मालिक अनुच्छेद 226 से निर्देश ले सकता है।
ये मामले दिखाते हैं कि कोर्ट्स मालिक के पक्ष में हैं अगर साक्ष्य हों। BNS 2023 ने अपराधों को स्पष्ट किया, लेकिन संविधान पुलिस को जवाबदेह बनाता है।
निष्कर्ष
अगर पुलिस अवैध कब्जाधारी का साथ दे, तो मालिक BNS 2023 के क्रिमिनल प्रावधानों, संविधान के अनुच्छेद 14, 21, 300A और 226 के तहत मजबूत खड़ा है। पहले आंतरिक शिकायत, फिर कोर्ट, यही रास्ता है। 2025 तक, कोर्ट्स ऐसे मामलों में तेजी से फैसले दे रहे हैं ताकि न्याय मिले।
अगर आपका कोई विशिष्ट मामला है, तो तुरंत कानूनी मदद लें।



















